माँ अचार तो नही खाती,
मगर रखती है बनाके, जारों में,
उन मेहमानों के लिए जो चंद दिनों के लिए आते हैं,
कभी दिवाली में, होली, लोहरी, ईदों मे आते हैं,
अलग अलग चेहरे लिए, अलग अलग साइज में आते हैं!!
हर बार यही सोचता हूँ कि आखिर -
'माँ अचार क्यों बनाती है' ?