मैं शब्द हूँ,
सृष्टि के आदि से लेकर मानव के प्रगति का हस्ताक्षर हूँ
कहीं पत्थरों पर चोट करके अंकित हुआ,
तो कहीं हृदय पटल पर ना दिखने वाला हूँ।
मैं कुछ वर्णमाला और व्याकरण का बस मेल नहीं
मैं पावस और पावन वर्तनी का आलेख हूँ।
मैं शब्द हूँ।
रात की खामोशी में हूँ
तो पक्षियों के कलरव में हूँ,
पर्वतों को चोट करती गँगा की धार में हूँ
तो ताज़गी घोलती पूर्वा बयार में हूँ ।
मैं शब्द हूँ ।।
मैं शंकर के डमरू में हूँ
तो काबे की अज़ान में हूँ,
ठंड में ठिठुरते फ़क़ीर के दुआ में हूँ
तो बिन बोले माँ के आशीर्वाद में हूँ।
हाँ मैं शब्द हूँ !!
बस शब्द हूँ!!
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