भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
गौरीशंकर शिखा है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
विंध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है,
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएँ हैं,
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
पावस के काले काले मेघ इसके कुंतल केश हैं ,
चाँद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
और मरने के बाद गंगा में बहती हुई हमारी हड्डियों को कोई कान लगाकर सुनेगा तो एक ही आवाज़ आएगी - भारत माता की जय
-अटल विहारी बाजपेयी
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
गौरीशंकर शिखा है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
विंध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है,
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएँ हैं,
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
पावस के काले काले मेघ इसके कुंतल केश हैं ,
चाँद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
और मरने के बाद गंगा में बहती हुई हमारी हड्डियों को कोई कान लगाकर सुनेगा तो एक ही आवाज़ आएगी - भारत माता की जय
-अटल विहारी बाजपेयी
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