मैं चाहता हूँ कुछ नज़्म लिखूं,
कुछ कविता, कुछ पंथ, ग़ज़ल नए,
कुछ अपना संसार लिखूं,
जीवन के कोरे पन्नों पर तेरा ही प्यार लिखूँ!
कुछ तुम्हारी मुस्कान पर,
कुछ मासूमियत पर,
कुछ उस गुस्से पर
कुछ हुश्न पर तो एकाध सादगी पर!
मेरी कवितायेँ बस चन्द अल्फ़ाज़ नहीं हैं, कुछ भावानाएँ हैं जो पन्नों में बिखरी हैं, उन्हें शब्दों में पीरोने की एक कोशिश है, कुछ यादें हैं जो अरसे से शब्दों की तलाश में थे, और उन्ही यादों में कुछ धूमिल से चेहरे, जिनको लिखने की कोशिश है...
मैं चाहता हूँ कुछ नज़्म लिखूं,
कुछ कविता, कुछ पंथ, ग़ज़ल नए,
कुछ अपना संसार लिखूं,
जीवन के कोरे पन्नों पर तेरा ही प्यार लिखूँ!
कुछ तुम्हारी मुस्कान पर,
कुछ मासूमियत पर,
कुछ उस गुस्से पर
कुछ हुश्न पर तो एकाध सादगी पर!
मैंने कभी तुम्हे अकेला नहीं देखा,
घिरे रहते थे तुम हमेशा
लोगों से
बड़े सुकून से देखा था तुम्हे –
लम्बे लम्बे नक्शों को जोडती लकीरें खीचते!
वो कैलकुलेटर जो तुम्हारे साथ बूढ़ा हुआ,
वो लकड़ी की कुर्सी, जिसके निचे तुम फोम वाली
गद्दी लगाके बैठते थे,
और वो बाबा आदम के ज़माने का बक्शा जिसमे ऑफिस के
सब कागजात समेट कर रखे थे,
वो कलर्ड पेन्सिल्स जो तुम्हे चुनाव में मिली थीं
वो स्केल, मार्कर, पेन, और वो जंग लगी आलपिन का डब्बा !!
एक तुम नहीं थे, एक दुनिया थी तुम्हारे साथ ....
ये सब रिटायर हो जायेंगे तुम्हारे साथ!!
- अवि