तुम, तुम बलात्कारियों को बचाने के लिए दंगे करते हो,
कभी तिरंगा लेकर,
कभी धर्म का झंडा लेकर,
कभी काला कोट पहनकर जो शायद तुम्हें संविधान के रक्षार्थ मिला है,
धर्म का चोला पहनकर इंसानियत बदनाम करते हो,
और हर कुकृत्य को धर्म की नज़र से देखते हो,
अस्मिता लूटने वाले अमानुषों को बचाने की कोशिश करते हो!
और कोशिश इसलिए क्योंकि वो तुम्हारे धर्म का है,
कोशिश क्योंकि तुम उसे अपना रहनुमा मानते हो!
तुम ऐसे समूह से भी हो जो कुछ धर्म विशेष की घटनाओं पर ही विरोध करते हैं!
तुम कहीं बोलते हो तो कहीं किसी धृतराष्ट्र की सभा में 'भीष्म' मौन धारण कर लेते हो!
तुम चीखों में मज़हब ढूंढते हो,
और इसीलिए ऐसे लोगों को समर्थन देते हो जो तुम्हारे जाति, मज़हब का होता है!!
क्योंकि उन्होंने तुम्हारे अंदर एक डर भर दिया है कि तुम्हारा धर्म खतरे में है,
और वो खतरा, समाज में खाई पैदा कर रहा है,
दीवार बना रहा है!!
लेकिन परमेश्वर की सबसे अतुल्य कृति, सबसे प्रबुद्ध मनु की संतानों सुनो -
वो उद्घोष किसी कालखंड का नहीं था, समय सबका इतिहास लिखेगा!! शर-शैय्या पर बैठकर तुन्हें अपने मृत्यु को देखना होगा,
गर्दन तुम्हारी धरा पर वैसे ही गिरेगी और तुम्हारे जंघे वैसे ही टूटेंगे-
"....परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।"