मेरी कवितायेँ बस चन्द अल्फ़ाज़ नहीं हैं, कुछ भावानाएँ हैं जो पन्नों में बिखरी हैं, उन्हें शब्दों में पीरोने की एक कोशिश है, कुछ यादें हैं जो अरसे से शब्दों की तलाश में थे, और उन्ही यादों में कुछ धूमिल से चेहरे, जिनको लिखने की कोशिश है...
Saturday, March 25, 2017
रेवती
केशव अब देर ना करो.
Monday, March 6, 2017
मैं शब्द हूँ
मैं शब्द हूँ,
सृष्टि के आदि से लेकर मानव के प्रगति का हस्ताक्षर हूँ
कहीं पत्थरों पर चोट करके अंकित हुआ,
तो कहीं हृदय पटल पर ना दिखने वाला हूँ।
मैं कुछ वर्णमाला और व्याकरण का बस मेल नहीं
मैं पावस और पावन वर्तनी का आलेख हूँ।
मैं शब्द हूँ।
रात की खामोशी में हूँ
तो पक्षियों के कलरव में हूँ,
पर्वतों को चोट करती गँगा की धार में हूँ
तो ताज़गी घोलती पूर्वा बयार में हूँ ।
मैं शब्द हूँ ।।
मैं शंकर के डमरू में हूँ
तो काबे की अज़ान में हूँ,
ठंड में ठिठुरते फ़क़ीर के दुआ में हूँ
तो बिन बोले माँ के आशीर्वाद में हूँ।
हाँ मैं शब्द हूँ !!
बस शब्द हूँ!!