Saturday, March 25, 2017

केशव अब देर ना करो.

केशव अब देर ना करो.

समय ने ली अब करवट कि, केशव,
तिमिर घनघोर होता जा रहा,
विषाक्त हो रही हवाएं अब केशव
बसेरा पंछियों का उजड़ता जा रहा,
हाहाकार है चहुँ ओर केशव,
पायल बजने से डरती है अब,
लहू का खेल है चहुँ ओर केशव,
आवाजें स्वतंत्र, दबती जा रही ||1||

पुत्र-मोह में धृतराष्ट्र फिर अँधा हुआ है,
सभ्यता फिर समाज में नंगा हुआ है,
पटकथाएं लाक्षागृह की लिखी जा रही हैं,
द्रौपदी धर्मराजों की सभा में चीखी जा रही
सकुनियों ने रचा है नव षड्यंत्र केशव,
पितामह भीष्म भी खामोश बैठा!!
हर द्रौपदी के चिर को है खतरा है केशव,
दुःशासनों की तादाद बढ़ती जा रही !! ||२||

प्रलय की एक छोर पर मानव खड़ा है,
नखों को तेज़ किये दानव बना है,
छिपा है रूप मारीच कई अब,
आया है साधु-वेश में रावण नीच अब,
वेद-प्रवचन को पाखंड का पर्याय करके,
बने स्वघोषित ईश्, मनुजता को असहाय करके,
मंदिरों-मस्जिदों में अस्मिता लूटती हैं अब,
अबलाएँ तेरे सामने चीखतीं हैं अब  ||३||

किया था ग्राह से गजराज का ज्यों तार केशव,
दिया था अर्जुन को जैसे गीता का सार केशव,
किया था से ज्यों शिशुपाल का संहार केशव,
दिया था सुदामा का ज्यों उद्धार केशव,
कहाँ हो इस संकट की घडी में केशव?
भूल गए प्रण, लिए थे जो कुरुक्षेत्र के समर में?
वही विश्वरूप की है हमें है इंतजार केशव
तज बांसुरी कर लो सुदर्शन धार केशव ||४||

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