दुनियां में आना गलती थी ना जाने किस प्रयोजन से आ गयी
? शायद उसे आना ही नहीं चाहिए था । पर यह उसकी गलती नहीं थी । माँ के गर्भ में उसे
मारने की असफल साजिशें और पैदा होने के कुछ वर्षों तक उस मासूम को मारने की संपूर्ण
तरीके नाकामयाब हो गए । हाँ, शायद नियति की यही मंजूर था । आज भी वह प्रकृति के अद्वितीय
स्वरूपों को देखकर खुश होती रेवती यह सोचती की उसे आने से क्यों रोका जा रहा था । वह
भी तो अपने माँ बाप का अभिन्न अङ्ग थी ?
रेवती की जिज्ञाषा को नाकारा नहीं जा सकता , पांच साल
की ही अवस्था में उसने घरेलू कामों में माँ का हाथ बंटाना अपना दिनचर्या बना लिया
था ।
बाप की शराब की लत और माँ की ख़ामोशी और समाज में फैली
दुर्व्यवस्था अज्ञानता ही शायद वो कारण थे जो रेवती को इस दुनिया में आने के बाद भी
उसे स्कूल की चौकठ तक ना जाने
दिए । इस व्यवस्था से लड़ती उसकी माँ एक दिन मिटटी का
तेल डालकर आत्महत्या कर ली और छोड़ दिया उस अभागन को इस दुनियां में !!
उसके पिता के पास जब शराब के लिए कुछ ना बचा तो उसने
बेंच दिया ना ना नहीं नहीं , समाज को दिखाने के लिए उसकी शादी कर दी । चौदह साल की
रेवती उस समय बेहोश थी और उसके पिता ने उसे फेरा दिलवाया।
मासूम कली जो समय से पहले खिलने पर मजबूर हो गयी , उसे
अनेकानेक तरह की प्रताणनाए दी जाने लगी ।
आज, चूँकि रेवती ने एक बच्चे के बजाय एक कन्या को जन्म
दिया है इसलिये उसके ससुराल वालों ने उसे घर
से निकाल दिया । कोई कुछ ना बोला , छोड़ दिया उसे इस दुनियां में !!
वह रेवती अब इलाहाबाद आ गयी है। कभी किसी कवि की कविता
में "पत्थर तोड़ती है " तो कभी "उन भेड़ियों "से बचती फिरती है ।और ना जाने कब तक?? छाया में बैठी उसकी बेटी जो रोटियां
तॊड रही है हमसे यह प्रश्न पूछ रही है की "क्या ये नियति ने लिखा या हमने??"क्या
उसकी या उन जैसों की यही नियति है ?? ज़रा सोचिए ।
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