Sunday, September 10, 2017

आज मैं कितना अकेला

आज फिर मैं अकेला,
मेरे सपने मेरे जज़्बात ,
एक कोने में बैठा अतीत का याद,
कभी खुद से लड़ता, कभी उदास,
सोचता कभी,कभी सहसा अट्ठहास,
रूठे अपने,टूटे सपने,
भविष्य का भय,
वर्तमान को संजोने का प्रयास,
इन उलझनों में सिमटता,
आज मैं कितना एकांत कितना अकेला !

Tuesday, September 5, 2017

शिक्षक

मेरे पूज्य गुरुजन,

कबीर ने कहा था- "गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त, वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त "  अर्थात गुरु और पारस में अंतर होता है, पारस तो लोहे को सोना बना देता है लेकिन एक गुरु अपने शिष्य को अपने समान बना देता है । वह अपने ज्ञान गागर में से सब कुछ खाली करके अपने शिष्य को दे देता है .
मेरे गुरुजन, मैंने कभी भी आपको प्यार नहीं किया, हमेशा मैं आपको एक अलग नफरत से देखता रहा. और देखूं भी ना क्यों, आपने गणित की जटिल समस्याओ से लेकर इतिहास की पुराने से पुराने युद्धों की तिथियों को आप ने हमें याद करा दिया था. वो सभी विषय जो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं थे वो भी आप की वजह से पढ़ा मैंने. कितना सताया है आप लोगों ने? हिंदी और अंग्रेजी की नक़ल राइटिंग में थोड़ा भी मात्रा इधर उधर होने पर आपकी डांट और उसी शब्द को सौ बार लिखने की सजा, ओह्ह कितना भयावह था वह।  सुबह की प्रार्थना की लाइन से लेकर शाम को छुट्टी की घंटी बजने तक मैं यही सोचता था की कैसे समय बीत जाए और मैं इस स्कूल रूपी कैद से भाग जाऊं.

समय बीतता गया, क्लास-दर-क्लास मैं आगे बढ़ता चला गया, वो सभी सीख जो मैंने एक एक क्लास में आपसे ग्रहण किया था वो जाने अनजाने में मुझे निखारता चला गया और आज ये सोचता हूँ की कौन ऐसा प्राणी होगा जिससे मैंने कभी अच्छा ना माना लेकिन उसने बड़ी सहजता और निःस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व मेरे पर निछावर  कर दिया क्यूंकि शायद वह ही पहला शख्स था जिसने मेरे माँ-पिता के बाद मेरे में एक इंजीनियर, एक नेता या एक भविष्य देखा था और उस भविष्य को रचने में वह बाहर से क्रूर ह्रदय बना रहा, मेरे आस पास, मेरे मन में अज्ञान का जो खर पतवार उग आया था उसे बड़ी तल्लीनता से वो हटाता रहा और मुझे आगे बढ़ने निखरने के लिए जो चाहिए था सब दिया. वह बस वो प्राणी नहीं था जो मेरा होमवर्क, मेरे एग्जाम के कॉपी घर ले जाके चेक करता था, वह लाल पेन से मेरी गलतियों को सुधारने वाला मात्र नहीं था,  वह तो वो था जिसने हर तरह से मुझे अन्धकार में जलने के लिए प्रेरित किया.

मैं आज जो कुछ भी हूँ उन्ही गुरुजनो की बदौलत हूँ, नहीं तो मैं तो कुछ भी नहीं. मेरे गुरुजन, आज मैं भी आपकी तरह संपूर्ण स्वार्थ का त्याग करके उस मार्ग पर निकला हूँ जिसके लिए आपने मुझे तरासा था । कठिनाइयां तो हैं ही, कांटे भी हैं, जिनसे कभी कभी मेरा पैर लहूलुहान हो जाता है, लेकिन हार नहीं मानूंगा |
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ
पावों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ
निज हाथों में हँसते-हँसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा |

मेरे गुरुजन, मुझे शक्ति और सामर्थ्य दें ताकि अब मैं इस समर में -न दैन्यम न पलायनम का उद्घोष करते हुए आगे बढूं और उस कर्म को सिद्ध करूँ जिसके लिए आपने मुझे निखारा, संवारा, सींचा, और आगे बढ़ने, अच्छे और सामाजिक काम करने की लिए प्रेरित किया |
कोटिशः नमन गुरुवर ।

Saturday, September 2, 2017

अभिव्यक्ति चाहता हूँ

चाह नहीं मेरी कविता सुन,
कवि मुझे पुकारा जाये,
चाह नहीं विचार सुन मेरे
बात युगों तक दुहराई जाए,
ना कवि ना विचारक
ना कोई और संज्ञा चाहता हूँ,
बस इस "बेबस" दुनिया को
संजीवनी देना चाहता हूँ,
एक मनु होने के नाते
विचारों की अभिव्यक्ति चाहता हूँ...
कलम बंधी है आज
और निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े है
उस कलम को फिर मैं
एक पहचान देना चाहता हूँ,
उस सोई हुई आवाजों में
सिंघनाद देना चाहता हूँ,
अभिव्यक्ति नई चाहता हूँ...

-अविनाश कुमार पाण्डेय