चाह नहीं मेरी कविता सुन,
कवि मुझे पुकारा जाये,
चाह नहीं विचार सुन मेरे
बात युगों तक दुहराई जाए,
ना कवि ना विचारक
ना कोई और संज्ञा चाहता हूँ,
बस इस "बेबस" दुनिया को
संजीवनी देना चाहता हूँ,
एक मनु होने के नाते
विचारों की अभिव्यक्ति चाहता हूँ...
कलम बंधी है आज
और निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े है
उस कलम को फिर मैं
एक पहचान देना चाहता हूँ,
उस सोई हुई आवाजों में
सिंघनाद देना चाहता हूँ,
अभिव्यक्ति नई चाहता हूँ...
-अविनाश कुमार पाण्डेय
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