Tuesday, April 17, 2018

हवाएँ

जहरीली हो रहीं हवाएं,
पंछियों का कलरव,
और भ्रमरों का गुंजन,
सुन्न पड़ा है,
हर तरफ ना जाने क्या करने की आपाधापी है,
स्याहियां चेहरे पर फेंकी जा रही!!
कवियों, अब तुम ही बाहर आओ, 
चेतना-क्रांति भरो कविता में,
हुंकार भरो नए सवेरे की लिए!
-अवि

No comments:

Post a Comment