Wednesday, November 23, 2016

अतीत के पन्ने !

कई बार आपके द्वारा अतीत में किये गए व्यवहार आपको बदल देते हैं । उस ट्रांजीशन स्टेट में फिर जब अतीत की याद आती हैं तो आत्मसम्मान पुरानी अज्ञानता पे हावी हो जाता है और आप स्ट्रेंज हो जातें हैं।आप अतीत की घटनाओं से ग्लानि से भर जातें हैं । उस समय आपको पता होता है की इन चीजों को बाहर नहीं लाना चाहिए ......आप कैसे उन नकाबों के पीछे चेहरे को पढ़ने में विफल हो गए थे ! जिन लोगों को आपने सदा अपना समझा था, जिन्हें माना था कि वे ही वो चार कंधे हैं और जिनके ख़ुशी के लिए आपने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था | आप सोचते हैं कि किस अज्ञानता में आप जी रहे थे, आप अगर उस समय अपने पे ध्यान दिए होते तो आपकी ये हालत नहीं होती |
फिर आप सत्य की ओर खींचे चले जाते हैं ।
आप अतीत को बदलना चाहते हैं, जीवन के टाइमलाइन से डिलीट करना चाहते हैं, पर इसपे आपका बस नहीं | आपका उद्द्वेलित मन शांत होता है और अंततः आप मुकेश का गाना "नदिया चले चले रे धारा, चंदा चले चले रे तारा, तुझको चलना होगा" गाते हुए, सत्य को आत्मसात करके आगे बढ़ जातें हैं । "शायद यही जीवन है ।"

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