Wednesday, November 23, 2016

न दैन्यं न पलायनम्

जब भी कभी मैं जिंदगी, सफलता-विफलता, रिश्ते-नाते, प्यार, मोहब्बत की बातें सोचता हूँ तो अनायास ही मेरा नाम जोकर का वो गाना-'कल खेल में हम हों ना हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा....जीना यहाँ मरना यहाँ...इसके सिवा जाना कहाँ' याद आ जाता है।
कभी कभार तो अपेक्षाएं इतनी भारी हो जाती हैं कि उनको पूरा करने के लिए लगता है कोई भीष्म प्रण ही लेना पड़ेगा। बात भी यथार्थ है, अगर बड़ी सफलता पानी है तो कर्म भी बड़े करने पड़ेंगे । सामने कोई हो, कितना भी बड़ा हो आपके साहस के आगे वो कोई नहीं है । जिस भीष्म ने भी ऐसा दुःसाहस किया है उसके आगे स्वयं सुदर्शनचक्रधारी भी अपनी प्रतिज्ञा तोड़ते नजर आएं हैं ।आजु ना हरिहि शस्त्र गहाउँ, आपको भी कहना पड़ेगा, विपत्तियां तो आती हैं, जाती हैं, लेकिन, मित्र आप विपत्तियों के स्वामी बनना सीखना होगा । सत्य की जयघोष करते हुए, अर्जुन प्रण लेना पड़ेगा- ना  दैन्यम ना पलायनम, अथार्त् ना मैं अपने शत्रुओं पे तनिक भी दीनता दिखाऊंगा और ना ही पलायन करूँगा, फिर भले ही मौत ही क्यों ना आ जाये, हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं, जित्वा वा भोज्यसे महिम !!
और याद रखना ही होगा, सफलता उन्ही की दासी रही है जिनमे ये दुःसाहस भरा है।
-अविनाश कुमार पाण्डेय 'अवि'

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