सूरज तू अकेला क्यूँ चलता है?
क्या तेज शौर्य और तेरी प्रचंड
किरणे तेरी दुश्मन हैं ?
तू सदैव अकेला ही उदय हुआ
औ अकेला ही अस्त !
दूसरी तरफ चाँद है,
उसमे तेरे जैसी चमक तेज नहीं है,
पर उसके साथी हैं तारे असंख्य,
अगणित अनोखे करते विभामंडल
को सुशोभित और मनोरम,
शायद वे चन्द्रमा की शीतलता
के कारण ही उसके मित्र हैं!
तो क्या मैं ये मान लूँ
की सूरज की तीक्ष्ण और तप्त
किरणे ही उसका दुश्मन हैं ?
क्या प्रसिद्ध होने का मतलब
अनगिनत दोस्तों का होना है?
प्रसिद्धि क्या है ? मुझे नहीं पता !
पर अगर आप को पता हो तो बताएं |
मुझे जो लगता है वो ये कि
सफलता या आपकी विश्वसनीयता का
मात्रक आपका निस्वार्थ कर्म है
आपकी पीछे या साथ खडी भीड़
से इसका वास्ता नहीं !
और ना ही एकाकीपन एक अपराध है !
-अविनाश कुमार पाण्डेय 'अवि'
मेरी कवितायेँ बस चन्द अल्फ़ाज़ नहीं हैं, कुछ भावानाएँ हैं जो पन्नों में बिखरी हैं, उन्हें शब्दों में पीरोने की एक कोशिश है, कुछ यादें हैं जो अरसे से शब्दों की तलाश में थे, और उन्ही यादों में कुछ धूमिल से चेहरे, जिनको लिखने की कोशिश है...
Wednesday, November 23, 2016
एकांकीपन
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