Tuesday, April 17, 2018

हवाएँ

जहरीली हो रहीं हवाएं,
पंछियों का कलरव,
और भ्रमरों का गुंजन,
सुन्न पड़ा है,
हर तरफ ना जाने क्या करने की आपाधापी है,
स्याहियां चेहरे पर फेंकी जा रही!!
कवियों, अब तुम ही बाहर आओ, 
चेतना-क्रांति भरो कविता में,
हुंकार भरो नए सवेरे की लिए!
-अवि

Saturday, April 14, 2018

पहचान मेरी मत पूछो

घनघोर तिमिर में आस हूँ मैं,
रवि-सा तेज प्रकाश हूँ मैं,
अडिग ज्योति हूँ झंझावातों में,
मानव की पहचान हूँ मैं,
विकराल हूँ ,साकार हूँ ,
शिव-शंभू की अवतार हूँ मैं,
हूँ प्रेम-मूर्ति,पावन सदैव ,
हर-गंगे की ललकार हूँ मैं ||१||

हूँ तेज-तीव्र ,मन-कंचन–निर्मल,
बहती निश्चल पर्वत पर कल-कल ,
हूँ मलय-समीर, हूँ अनल मैं,
सत्य की रणभेदी,सिंहनाद हूँ मैं ,
मैं हूँ श्रृष्टि का आदि-बीज,
प्रेम ज्ञान से जग को सींच,
कर कल्याण अतुल्य, दे अभय दान,
यमराज से छीन लायी प्राण! ||२||

अग्नि में सीता की पावित्र्य मैं,
पद्मिनियों का चारित्र्य मैं,
वेदों में अतुलित व्याख्यान मैं,
चर-अचर में विद्यमान मैं,
युग चेतन की प्रखर ज्वाल मैं,
स्वातंत्र्य-वेदी पर समर्पित भाल मैं,
पराक्रम-शौर्य का अमिट इतिहास मैं,
श्रुति-धृति, मर्म मैं, अटल धर्म-प्रभास मैं ||३||

अबला नहीं ,सबला हूँ मैं,
हूँ दुर्गा की काया मैं,
मैं धाय-पन्ना माता-सी,
लक्ष्मी-सती की प्रतिछाया मैं,
निर्भया हूँ मैं, रेवती हूँ मैं,
माता-भगिनी-बेटी हूँ मैं ,
संपूर्ण समाहित खुद में,
हर कर्म में अधिकारी हूँ मैं ||४||


परमेश्वर की अतुलित कृति हूँ मैं,
अद्भुत-अकल्पनीय सृष्टि हूँ मैं,
विस्तृत नभ हूँ मैं, अविकारी हूँ मैं,
स्तुति मैं, तेज़ मैं, चिंगारी हूँ मैं,
मैं उपवन हूँ, जीवन में फुलवारी हूँ,
सृष्टि-चक्र में भागीदारी हूँ मै,
पुण्य मैं प्रसून मैं, सिंह की सवारी हूँ मैं,
नारी हूँ मैं ,नारी हूँ मैं, नारी हूँ मैं !!!!! ||५||
बालिका अहं बालिका नव युग जनिता अहं बालिका ।
नाहमबला दुर्बला आदिशक्ति अहमम्बिका ।।“ 
-“नारी की अखंडता ,त्याग,साहस,सौन्दर्य,कर्त्यव्यपरायणता को समर्पित”
-अविनाश पाण्डेय “अवि ”


Saturday, March 31, 2018

तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ

तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं,
जीवन के कोरे पन्नों पर, 
काव्य सृजन अब कर जाऊं, 
तस्वीर तुम्हारी.....!!! 
मुस्कान पर ग़ज़ल लिखूं या 
होंठों पर मधुपान लिखूं, 
माथे की बिंदियाँ पर सूरज लिखूं, या 
जुल्फों पर बादल का उपमान लिखूं, या 
आँखों में बहती मोती को, 
पारस का श्वेत-श्रृंगार लिखूं, 
प्यार के दीप को इस आंधी में, 
प्रखर प्रज्वलित कर जाऊं!! 
तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं!, 

यादों की ईंटों से मीनार लिखूं 
या बन खंडहर खुद दफ़न हो जाऊं, 
उन पन्नों से प्रेम-ग्रन्थ लिखूं, 
या जला कर हृदय तप्त कर जाऊं , 
बन शिव पी जाऊं गरल अतीत, 
नाम अमर अब कर जाऊं !! 
तस्वीर तुम्हारी लिख दू अब, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं!! 

-अविनाश पाण्डेय "अवि"