Monday, February 13, 2023

यथार्थ

 जब पेड़ से गिरा सेब तब न्यूटन ने ढूंढा ग्रेविटी

मैं कोई न्यूटन तो नहीं मगर 

इस पेड़ की छाँव में बैठकर मैंने ढूंढा प्रेम तुम्हारा !!


अगर ग्रेविटी एक यथार्थ है – 

समय से भी परे है 

तो मेरा प्रेम भी यथार्थ की परिमिति है

समय की सीमा से बंधा नहीं नहीं है !!


तुम्हारे प्रेम की तरफ खींचा चला गया हूँ मैं वैसे ही जैसे - 

ग्रेविटी खींचती है चीजों को अपनी तरफ!!

मैं कितना भी ऊपर क्यों ना चला जाऊं

पुकारता है तुम्हारा प्रेम, 

देने के लिए मुझे धरातल

ताकि मैं स्थिर रहूँ !!


मैं हमेशा तुम्हारे नाम से जाना जाऊंगा अब

ठीक ऐसे ही जैसे न्यूटन जाने जाते है ग्रेविटी से

पूरक हैं हम एक दूसरे के क्यूंकि -

तुम्हारा प्यार मेरा वजूद है

मेरा होना इसका सबसे बड़ा सबूत है 

ग्रेविटी बांधे है जैसे संपूर्ण ब्रह्माण्ड को 

वैसे ही बंधा हूँ मैं अपने अस्तित्व से !

-अवि

Thursday, December 23, 2021

कुछ नज़्म लिखूँ

मैं चाहता हूँ कुछ नज़्म लिखूं,
कुछ कविता, कुछ पंथ, ग़ज़ल नए,
कुछ अपना संसार लिखूं,
जीवन के कोरे पन्नों पर तेरा ही प्यार लिखूँ!

कुछ तुम्हारी मुस्कान पर,
कुछ मासूमियत पर,
कुछ उस गुस्से पर
कुछ हुश्न पर तो एकाध सादगी पर!

Tuesday, June 15, 2021

रिटायरमेंट

मैंने कभी तुम्हे अकेला नहीं देखा,

घिरे रहते थे तुम हमेशा

लोगों से

बड़े सुकून से देखा था तुम्हे –

लम्बे लम्बे नक्शों को जोडती लकीरें खीचते!

 

वो कैलकुलेटर जो तुम्हारे साथ बूढ़ा हुआ,

वो लकड़ी की कुर्सी, जिसके निचे तुम फोम वाली

गद्दी लगाके बैठते थे,

और वो बाबा आदम के ज़माने का बक्शा जिसमे ऑफिस के

सब कागजात समेट कर रखे थे,

वो कलर्ड पेन्सिल्स जो तुम्हे चुनाव में मिली थीं

वो स्केल, मार्कर, पेन, और वो जंग लगी आलपिन का डब्बा !!

 

एक तुम नहीं थे, एक दुनिया थी तुम्हारे साथ ....

ये सब रिटायर हो जायेंगे तुम्हारे साथ!!

- अवि

Friday, June 11, 2021

धर्मसंस्थापनार्थाय

तुम, तुम बलात्कारियों को बचाने के लिए दंगे करते हो,
कभी तिरंगा लेकर,
कभी धर्म का झंडा लेकर,
कभी काला कोट पहनकर जो शायद तुम्हें संविधान के रक्षार्थ मिला है,
धर्म का चोला पहनकर इंसानियत बदनाम करते हो,
और हर कुकृत्य को धर्म की नज़र से देखते हो,
अस्मिता लूटने वाले अमानुषों को बचाने की कोशिश करते हो!
और कोशिश इसलिए क्योंकि वो तुम्हारे धर्म का है,
कोशिश क्योंकि तुम उसे अपना रहनुमा मानते हो!
तुम ऐसे समूह से भी हो जो कुछ धर्म विशेष की घटनाओं पर ही विरोध करते हैं!
तुम कहीं बोलते हो तो कहीं किसी धृतराष्ट्र की सभा में 'भीष्म' मौन धारण कर लेते हो!
तुम चीखों में मज़हब ढूंढते हो,
और इसीलिए ऐसे लोगों को समर्थन देते हो जो तुम्हारे जाति, मज़हब का होता है!! 
क्योंकि उन्होंने तुम्हारे अंदर एक डर भर दिया है कि तुम्हारा धर्म खतरे में है,
और वो खतरा, समाज में खाई पैदा कर रहा है,
दीवार बना रहा है!!

लेकिन परमेश्वर की सबसे अतुल्य कृति, सबसे प्रबुद्ध मनु की संतानों सुनो - 
वो उद्घोष किसी कालखंड का नहीं था, समय सबका इतिहास लिखेगा!! शर-शैय्या पर बैठकर तुन्हें अपने मृत्यु को देखना होगा, 
गर्दन तुम्हारी धरा पर वैसे ही गिरेगी और तुम्हारे जंघे वैसे ही टूटेंगे-

"....परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।"

Tuesday, April 17, 2018

हवाएँ

जहरीली हो रहीं हवाएं,
पंछियों का कलरव,
और भ्रमरों का गुंजन,
सुन्न पड़ा है,
हर तरफ ना जाने क्या करने की आपाधापी है,
स्याहियां चेहरे पर फेंकी जा रही!!
कवियों, अब तुम ही बाहर आओ, 
चेतना-क्रांति भरो कविता में,
हुंकार भरो नए सवेरे की लिए!
-अवि

Saturday, April 14, 2018

पहचान मेरी मत पूछो

घनघोर तिमिर में आस हूँ मैं,
रवि-सा तेज प्रकाश हूँ मैं,
अडिग ज्योति हूँ झंझावातों में,
मानव की पहचान हूँ मैं,
विकराल हूँ ,साकार हूँ ,
शिव-शंभू की अवतार हूँ मैं,
हूँ प्रेम-मूर्ति,पावन सदैव ,
हर-गंगे की ललकार हूँ मैं ||१||

हूँ तेज-तीव्र ,मन-कंचन–निर्मल,
बहती निश्चल पर्वत पर कल-कल ,
हूँ मलय-समीर, हूँ अनल मैं,
सत्य की रणभेदी,सिंहनाद हूँ मैं ,
मैं हूँ श्रृष्टि का आदि-बीज,
प्रेम ज्ञान से जग को सींच,
कर कल्याण अतुल्य, दे अभय दान,
यमराज से छीन लायी प्राण! ||२||

अग्नि में सीता की पावित्र्य मैं,
पद्मिनियों का चारित्र्य मैं,
वेदों में अतुलित व्याख्यान मैं,
चर-अचर में विद्यमान मैं,
युग चेतन की प्रखर ज्वाल मैं,
स्वातंत्र्य-वेदी पर समर्पित भाल मैं,
पराक्रम-शौर्य का अमिट इतिहास मैं,
श्रुति-धृति, मर्म मैं, अटल धर्म-प्रभास मैं ||३||

अबला नहीं ,सबला हूँ मैं,
हूँ दुर्गा की काया मैं,
मैं धाय-पन्ना माता-सी,
लक्ष्मी-सती की प्रतिछाया मैं,
निर्भया हूँ मैं, रेवती हूँ मैं,
माता-भगिनी-बेटी हूँ मैं ,
संपूर्ण समाहित खुद में,
हर कर्म में अधिकारी हूँ मैं ||४||


परमेश्वर की अतुलित कृति हूँ मैं,
अद्भुत-अकल्पनीय सृष्टि हूँ मैं,
विस्तृत नभ हूँ मैं, अविकारी हूँ मैं,
स्तुति मैं, तेज़ मैं, चिंगारी हूँ मैं,
मैं उपवन हूँ, जीवन में फुलवारी हूँ,
सृष्टि-चक्र में भागीदारी हूँ मै,
पुण्य मैं प्रसून मैं, सिंह की सवारी हूँ मैं,
नारी हूँ मैं ,नारी हूँ मैं, नारी हूँ मैं !!!!! ||५||
बालिका अहं बालिका नव युग जनिता अहं बालिका ।
नाहमबला दुर्बला आदिशक्ति अहमम्बिका ।।“ 
-“नारी की अखंडता ,त्याग,साहस,सौन्दर्य,कर्त्यव्यपरायणता को समर्पित”
-अविनाश पाण्डेय “अवि ”


Saturday, March 31, 2018

तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ

तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं,
जीवन के कोरे पन्नों पर, 
काव्य सृजन अब कर जाऊं, 
तस्वीर तुम्हारी.....!!! 
मुस्कान पर ग़ज़ल लिखूं या 
होंठों पर मधुपान लिखूं, 
माथे की बिंदियाँ पर सूरज लिखूं, या 
जुल्फों पर बादल का उपमान लिखूं, या 
आँखों में बहती मोती को, 
पारस का श्वेत-श्रृंगार लिखूं, 
प्यार के दीप को इस आंधी में, 
प्रखर प्रज्वलित कर जाऊं!! 
तस्वीर तुम्हारी लिख दूँ, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं!, 

यादों की ईंटों से मीनार लिखूं 
या बन खंडहर खुद दफ़न हो जाऊं, 
उन पन्नों से प्रेम-ग्रन्थ लिखूं, 
या जला कर हृदय तप्त कर जाऊं , 
बन शिव पी जाऊं गरल अतीत, 
नाम अमर अब कर जाऊं !! 
तस्वीर तुम्हारी लिख दू अब, 
या खुद कविता मैं बन जाऊं!! 

-अविनाश पाण्डेय "अवि"