कभी- कभी मेरा मन अतीत के यादों में खो जाता है. उन यादों को,जब मैं कागज पर अवतरित करने की सोचता हूँ तो अपने को असमर्थ पाता हूँ . उन धुंधली तश्वीरो को बनाना वास्तव में काफी कठिन काम है. मेरी इसी असमर्थता को बयां करती मेरी कविता-
जब शब्द नहीं आते हो,
विचार बने मिट जाते हो,
कुछ करने ना करने की लाचारी हो
तब क्या लिखूं?
जब हर एक क्यारी के पौधे ,
हो जाये यूँ सडे खड़े,
जब भाव-वेदना की ज्वाला ,
सो जाये यूँ मरे पडे,
तब क्या लिखूं?
जीवन की सार्थकता पर ,
खडे हों प्रस्न अनगिनत,
झंझावत सी उठती क्रोधाग्नि,
मन को जलाये अनवरत,
तब मैं क्या लिखूं?
-अविनाश पाण्डेय “अवि”