आज मेरा मन काफी उद्वेलित और आक्रांत है। नव् वर्ष पर जो घटना बंगलौर में हुई वह देश को शर्मसार करने वाली तो है ही साथ ही यह एक प्रश्नचिह्न है आधुनिक समाज के लिए । प्रायः यही देखा गया है कि ऐसी घटनाएं होती है उसके बाद कुछ दोगलों की टिपण्णी आती है, कोई कहता है कि एक हाथ से ताली नहीं बजती, कोई कहता है मेरे घर की बेटियां बहुएं ऐसे कपडे नहीं पहनती अगर कोई ऐसे पहनेगा तो ऐसी घटनाएं तो होंगी ही। वही कोई कहता है कि जहाँ शक्कर होगा वही चीटियां आएँगी। कितना दुर्भाग्य है इस देश का जो हमेशा से कहता आता है कि - 'यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः', पर मुझे तो अब यही लगता है कि नारी देवी बस पुराणों में है, दुर्गा, सरश्वती, आदि की तश्वीरों में है, कही किसी मंदिरों में है। वह बस साल में दो तीन बार कभी दुर्गा पूजन पे आती है, तो कभी लक्ष्मी पूजा में आती है और जब उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है तो उसी मंडप में बैठ कर चीलम, गांजा के साथ जुआ खेला जाता है।
प्रधानमंत्री मेरे बड़े शान से कहते हैं कि भारत ऐसा देश है जहाँ स्त्रियाँ देवियाँ है और पूजी जाती है। प्रधानमंत्री जी क्या पूजा ऐसे की जाती है? स्त्री जहाँ भोग की वस्तु है वहां क्या ऐसे दावे करना गलत नहीं है? आप निर्भया को भूल गए होंगे, जो लोग इंडिया गेट पर कैंडल जलाने गये थे वो भी भूल गए होंगे, पर मेरे अंदर गुस्सा अभी भी है क्योंकि हर पल कोई ना कोई निर्भया हैवानियत की शिकार होती है और प्रधानमंत्री जी, आपके साथ बैठे हुए नेता गण ऐसी टिपण्णी जब करेंगे तो मैं किससे सवाल जवाब करूँगा? बताइये जरा? बात बस पक्ष-परिपक्ष की नहीं है बात है अब भारत की अस्मिता का।
प्रधानमंत्री मेरे बड़े शान से कहते हैं कि भारत ऐसा देश है जहाँ स्त्रियाँ देवियाँ है और पूजी जाती है। प्रधानमंत्री जी क्या पूजा ऐसे की जाती है? स्त्री जहाँ भोग की वस्तु है वहां क्या ऐसे दावे करना गलत नहीं है? आप निर्भया को भूल गए होंगे, जो लोग इंडिया गेट पर कैंडल जलाने गये थे वो भी भूल गए होंगे, पर मेरे अंदर गुस्सा अभी भी है क्योंकि हर पल कोई ना कोई निर्भया हैवानियत की शिकार होती है और प्रधानमंत्री जी, आपके साथ बैठे हुए नेता गण ऐसी टिपण्णी जब करेंगे तो मैं किससे सवाल जवाब करूँगा? बताइये जरा? बात बस पक्ष-परिपक्ष की नहीं है बात है अब भारत की अस्मिता का।
अभी कुछ महीने पहले ऐसे ही एक फ्रांस और जर्मनी में हुई थी, जो सभ्य समाज का ढोंग पीटने वालो के ऊपर कलंक है . जब हम अपनी बहु-बेटियों की अस्मिता नहीं बचा सकते तो हम किस काम के? कब तक पहनावे को दोषी ठहराया जायेगा?
बहुत से दुशाशन तो भगवन कृष्ण के समय में भी थे पर वाशुदेव ने तो सुदर्शन उठा लिया था आप क्या करने वाले हैं मेरे प्रधान सेवक?
No comments:
Post a Comment