"ना किसी हमसफ़र, ना किसी हमनशीं से निकलेगा,
हमारे पैर का काँटा है, हमीं से निकलेगा ।"
लोग आपको अथाह सलाह देंगे, कभी रास्ते की सघनता और विकटता के बारे में, कभी काँटे की नोक और तीखी धार के बारे में, और बाबू मोसाय कुछ लोग आपके लहूलुहान पैर देखकर खेद भी प्रकट करेंगे लेकिन कोई आपका काँटा नहीं निकालेगा। उसकी चुभन का दर्द आपको ही बर्दाश्त करना है। अगली बार पैर में ना चुभे ये हुनर भी आपको ही डेवेलप करना है, और अगर चुभ जाए तो दर्द को बर्दास्त करके कर्त्तव्य पथ पर कैसे बढ़ते जाना है, ये भी आपको ही सीखना है। तो इस छोटे से पोस्ट का सार ये ही कि किसी की सहानुभूति और सहयोग, या पथ-प्रदर्शन की चिंता ना करो, अपनी नाव लो और पतवार मारते निकल पड़ो जीवन रूपी समुन्द्र में, और साहब, सफल हुए वास्को डी गामा बनोगे या कोलम्बस दुनिया आपको ही याद रखेगी, और अगर असफल हुए तो सागर की उफान मारती लहरें तुम्हारे सफ़र और साहस का सदियों तक गान करेंगी।
-अविनाश पाण्डेय
मेरी कवितायेँ बस चन्द अल्फ़ाज़ नहीं हैं, कुछ भावानाएँ हैं जो पन्नों में बिखरी हैं, उन्हें शब्दों में पीरोने की एक कोशिश है, कुछ यादें हैं जो अरसे से शब्दों की तलाश में थे, और उन्ही यादों में कुछ धूमिल से चेहरे, जिनको लिखने की कोशिश है...
Tuesday, January 17, 2017
पैर का काँटा
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Great
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